Utpanna Ekadashi Vrat katha in hindi:उत्पन्ना एकादशी 2025: पौराणिक कथा, तिथि, पूजा-विधि और महत्व | जानें दिव्य रहस्य और व्रत का अक्षय पुण्य”
उत्पन्ना एकादशी 2025 की तिथि, महत्व और पौराणिक कथा जानें। भगवान विष्णु को समर्पित यह व्रत अक्षय पुण्य, सुख-समृद्धि और पापों से मुक्ति प्रदान करता है।

पौराणिक कथा सुनने मात्र से मिलता है अक्षय पुण्य
उत्पन्ना एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत पावन और कल्याणकारी एकादशी मानी जाती है। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है, जो भक्तों को अपार पुण्य, सुख-समृद्धि और जीवन के हर संकट से रक्षा प्रदान करती है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत और पूजा करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है, और पौराणिक कथा का श्रवण व्रत को पूर्णता प्रदान करता है। वर्ष 2025 में उत्पन्ना एकादशी कब है, इसका महत्व क्या है और इस व्रत से जुड़े दिव्य रहस्य क्या हैं—आइए जानते हैं विस्तार से।
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली उत्पन्ना एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और उपवास करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और सभी संकट दूर होते हैं। श्रद्धा और भक्ति से किया गया यह व्रत व्यक्ति को शुभ फल प्रदान करता है और उसके जीवन में शांति तथा सकारात्मकता का संचार करता है।
पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में उत्पन्ना एकादशी 15 नवंबर, शनिवार को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि 15 नवंबर को दोपहर 12:49 बजे शुरू होकर 16 नवंबर तड़के 02:37 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के आधार पर व्रत 15 नवंबर को ही रखा जाएगा। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत का फल तभी पूर्ण होता है जब इसकी पौराणिक कथा सुनी या पढ़ी जाए।
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में मुर नाम का एक अत्यंत शक्तिशाली और भयानक दैत्य उत्पन्न हुआ था। उसने इंद्र सहित सभी देवताओं को पराजित कर स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया। भयभीत देवता भगवान शिव की शरण में पहुंचे, जहां शिवजी ने उन्हें भगवान विष्णु का आश्रय लेने की सलाह दी। इसके बाद सभी देवता क्षीरसागर में भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना की।
भगवान विष्णु ने देवताओं की व्यथा सुनकर दैत्य मुर का वध करने का संकल्प लिया और चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया। भगवान और मुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जो हज़ारों वर्षों तक चलता रहा। अंत में भगवान विश्राम के लिए एक गुफा में चले गए। जैसे ही मुर गुफा में प्रवेश कर भगवान पर हमला करने आया, विष्णु के शरीर से एक तेजस्वी देवी उत्पन्न हुईं और उन्होंने दैत्य का वध कर दिया।
योगनिद्रा से जागने पर भगवान विष्णु ने उस तेजस्विनी देवी को एकादशी का रूप बताया और कहा कि वह "उत्पन्ना एकादशी" नाम से पूजित होंगी। भगवान ने यह भी कहा कि जो भी भक्त इस एकादशी का व्रत रखेगा और इसकी कथा सुनेगा, उसे पापों से मुक्ति और अखंड पुण्य की प्राप्ति होगी। इसलिए उत्पन्ना एकादशी का महत्व और इसका व्रत कथा सुनना अत्यंत शुभ माना गया है।

