तारा-तारिणी मंदिर, गंजाम
तारा-तारिणी मंदिर ओडिशा राज्य के गंजाम ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर रुषिकुल्या नदी के दक्षिणी तट पर स्थित एक सुंदर पहाड़ी (कुमारी पहाड़) की चोटी पर स्थित है।

तारा-तारिणी मंदिर, गंजाम
तारा-तारिणी मंदिर ओडिशा राज्य के गंजाम ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर रुषिकुल्या नदी के दक्षिणी तट पर स्थित एक सुंदर पहाड़ी (कुमारी पहाड़) की चोटी पर स्थित है। यह देवी तारा और देवी तारिणी को समर्पित है, जो आदि शक्ति के रूप में पूजनीय हैं। यह मंदिर खासतौर पर तांत्रिक साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है, जहाँ तंत्र, योग और सिद्धि की साधनाएँ की जाती रही हैं।
मंदिर लगभग 708 फीट ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ तक पहुँचने के लिए लगभग 999 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, हालांकि अब श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए रोपवे और वाहन मार्ग की सुविधा भी उपलब्ध है।
माता तारा-तारिणी का स्वरूप
- मंदिर में स्थित दोनों देवियाँ तारा और तारिणी, माता पार्वती के ही रूप हैं।
- तारा देवी को करुणा और ज्ञान की देवी माना जाता है।
- तारिणी देवी संकट से तारने वाली, संकटमोचक देवी हैं।
- दोनों मूर्तियाँ काले ग्रेनाइट पत्थरों की हैं और इनमें नेत्र नहीं हैं। यह मूर्तियाँ अत्यंत प्राचीन हैं और बिना किसी बाहरी अलंकरण के, अपनी सादगी में ही परम शक्तिशाली मानी जाती हैं।
इतिहास
- तारा-तारिणी मंदिर का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों, जैसे कालिका पुराण, तंत्र चूड़ामणि और देवी भागवत में मिलता है।
- ऐसा माना जाता है कि जब माता सती ने अपने प्राण त्याग दिए थे और भगवान शिव उनका शव लेकर आकाश में घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के टुकड़े कर दिए।
- इस प्रक्रिया में सती के स्तन जहाँ गिरे, वह स्थान गंजाम जिले का यह पहाड़ी क्षेत्र था। इसलिए इसे स्तनपीठ भी कहा जाता है।
- यह शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में प्रमुख स्थान रखता है।
- प्राचीन काल में यह स्थान कलिंग साम्राज्य का हिस्सा था। कलिंग नरेशों द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार और विकास किया गया।
वास्तुशिल्प एवं मंदिर परिसर
- मंदिर का निर्माण पारंपरिक कलिंग स्थापत्य शैली में हुआ है।
- मंदिर पत्थरों से निर्मित है, जिनमें सूक्ष्म नक्काशी की गई है।
- गर्भगृह में दोनों देवियों की मूर्तियाँ एक साथ स्थापित हैं।
- मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए खुले मंडप, भंडारगृह, जल स्रोत और विश्रामस्थल भी हैं।
दर्शन समय
प्रातः दर्शन : 5:00 AM – 1:00 PM
सायं दर्शन : 3:00 PM – 9:30 PM
आरती समय सुबह 5:30, दोपहर 12:30, शाम 6:30
आरती व पूजन व्यवस्था
मंदिर में प्रतिदिन तीन बार आरती होती है:
1. मंगल आरती – सुबह 5:30 बजे
2. मध्यान्ह आरती (भोग आरती) – दोपहर 12:30 बजे
3. संध्या दीप आरती – शाम 6:30 बजे
श्रद्धालु नारियल, चुनरी, सिंदूर, हल्दी-कुमकुम, मिठाई आदि चढ़ा सकते हैं। पूजा के लिए विशेष थाली भी मंदिर परिसर में उपलब्ध होती है।
मंदिर तक पहुँचने का मार्ग
रेल मार्ग :
निकटतम रेलवे स्टेशन: ब्रह्मपुर – लगभग 30 किलोमीटर दूर
सड़क मार्ग :
राष्ट्रीय राजमार्ग NH-16 से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
हवाई मार्ग :
निकटतम हवाई अड्डा: भुवनेश्वर (बीजू पटनायक हवाई अड्डा) – लगभग 175 किमी
चढ़ाई विकल्प
- 999 सीढ़ियाँ — श्रद्धालु पदयात्रा द्वारा माता के दर्शन करते हैं।
- रोपवे – नया विकल्प जो बुजुर्गों व रोगियों के लिए विशेष सहायक है।
- वाहन मार्ग – पहाड़ी पर सड़क मार्ग से वाहन सीधे मंदिर परिसर तक जाते हैं।
प्रमुख पर्व व आयोजन
चैत्र नवरात्रि (मार्च-अप्रैल) :
- सबसे बड़ा वार्षिक मेला यहीं लगता है।
- लाखों श्रद्धालु इन 9 दिनों में माता के दर्शन हेतु आते हैं।
- विशेष पूजा, कन्या पूजन, भंडारे, जागरण आदि होते हैं।
माघ सप्तमी :
- रथ यात्रा का आयोजन होता है।
- देवी की मूर्ति को विशेष रथ में विराजमान कर परिक्रमा करवाई जाती है।
अन्य पर्व :
दुर्गा पूजा, दीपावली, संक्रांति, महाशिवरात्रि आदि पर विशेष पूजन होता है।
हर महीने की पूर्णिमा और अमावस्या को भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
मंदिर से विशेष आकर्षण
- रुषिकुल्या नदी का मनोरम दृश्य पहाड़ी से दिखाई देता है।
- प्राकृतिक शांति और दिव्यता का अनुभव होता है।
- मंदिर के आसपास छोटे दुकानों में धार्मिक वस्तुएँ, प्रसाद, और स्मृति चिह्न भी मिलते हैं।
- पास में विश्राम गृह और भोजनालय भी मौजूद हैं।
तारा-तारिणी मंदिर न केवल ओडिशा का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, बल्कि यह भारत की तांत्रिक परंपरा, शक्ति साधना, और भक्ति का जीवंत केंद्र है। यहाँ की ऊर्जा, वातावरण, प्राचीनता और आस्था की शक्ति श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति प्रदान करती है। यह मंदिर शक्ति, भक्ति और संस्कृति का अद्वितीय संगम है।