उत्तराखंड का अनोखा मंदिर: जहां असुर देवता की होती है पूजा | राहु मंदिर पैठाणी उत्तराखंड | इतिहास, महत्व और पूजा विधि
राहु का मंदिर: क्या आप जानते हैं कि देवभूमि कहलाए जाने वाले उत्तराखंड में, जहां देवताओं की पूजा होती है, वहीं एक ऐसा मंदिर भी है जहां एक असुर की पूजा की जाती है? आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे अनूठे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां राहु और भगवान शिव की संयुक्त आराधना की जाती है। यह मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पैठाणी नामक गाँव में स्थित है, जो स्योलीगाड़ नदी (रथवाहिनी नदी) और नवालिका (पश्चिमी नयार नदी) के संगम पर बसा है।
राहु मंदिर का इतिहास
'स्कंद पुराण' के केदारखंड के अनुसार, राष्ट्रकूट पर्वत की तलहटी में रथवाहिनी और नवालिका नदियों के संगम पर राहु ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। इसी कारण यहाँ राहु मंदिर की स्थापना हुई। इस क्षेत्र को 'रथक्षेत्र' कहा जाता है, जिसका नाम राष्ट्रकूट पर्वत से जुड़ा है। साथ ही, राहु के गोत्र 'पैठीनसी' के कारण इस गाँव का नाम 'पैठाणी' पड़ा।
राहु देवता का पौराणिक महत्व
समुद्र मंथन की कथा के अनुसार राहु का जन्म हुआ। कहानी के अनुसार, जब देवताओं और दैत्यों ने समुद्र मंथन कर अमृत निकाला, तो दैत्यराज राहु ने छलपूर्वक अमृत पान करने का प्रयास किया। सूर्य और चंद्रमा ने राहु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को इसकी सूचना दी। भगवान विष्णु ने तत्काल सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट दिया। चूंकि राहु ने अमृत का एक घूँट पी लिया था, इसलिए उसका सिर अमर हो गया — और वही राहु के रूप में पूजित हुआ। इसी घटना के कारण राहु को 'छाया ग्रह' माना जाता है, जो जीवन में अचानक उतार-चढ़ाव, कालसर्प दोष और मानसिक तनाव का कारक होता है।
भगवान विष्णु द्वारा सिर काटे जाने पर राहु का धड़ केतु कहलाया।
इसीलिए राहु और केतु दोनों को नवग्रहों में शामिल किया गया है।
राहु को सूर्य और चंद्रमा से शत्रुता हो गई, और तभी से वह समय-समय पर उन्हें "ग्रहण" लगाता है, जिससे सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होते हैं।
राहु का ज्योतिषीय महत्व
राहु को नवग्रहों में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, यद्यपि वह एक 'छाया ग्रह' है — यानी उसका कोई ठोस भौतिक अस्तित्व नहीं है। राहु भ्रम, भटकाव, माया, अचानक बदलाव, विदेश यात्रा, राजनीति, टेक्नोलॉजी और रहस्यमय शक्तियों का प्रतीक माना जाता है। यदि कुंडली में राहु शुभ स्थान पर हो तो व्यक्ति को अचानक बड़ी सफलता मिल सकती है, जैसे राजनीति में उन्नति, विदेश में बसना, या गुप्त विद्याओं में महारत प्राप्त करना। यदि राहु अशुभ हो तो मानसिक तनाव, धोखे, गलत निर्णय और आकस्मिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
राहु की विशेष उपासना विधि
राहु को प्रसन्न करने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं:
राहुकाल के समय विशेष पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
नीले या काले रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करें।
राहु बीज मंत्र का 108 बार जाप करें:
"ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।"
नीलम या गोमेद रत्न धारण करने से राहु दोष शांत होता है (परंतु रत्न धारण करने से पहले कुंडली का विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें)।
राहु दोष के निवारण हेतु काले तिल, चावल, उड़द दाल का दान करें और सांपों को भोजन कराना भी अत्यंत प्रभावी उपाय है।
राहु का विशेष दिन
शनिवार तथा राहुकाल के समय राहु पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।
हर वर्ष राहुकाल अमावस्या तथा कालसर्प दोष निवारण दिवस पर विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
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