कोणार्क सूर्य मंदिर, की जानकारी, उसकी विशेषता और पूजा विधि टाइमिंग
कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पुरी ज़िले के कोणार्क नगर में स्थित एक भव्य मंदिर है, जो सूर्य देव को समर्पित है। यह मंदिर भारत की सबसे शानदार वास्तुकलाओं में गिना जाता है और इसे 'सूर्य के रथ' की भांति निर्मित किया गया है।

कोणार्क सूर्य मंदिर, कोणार्क
कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पुरी ज़िले के कोणार्क नगर में स्थित एक भव्य मंदिर है, जो सूर्य देव को समर्पित है। यह मंदिर भारत की सबसे शानदार वास्तुकलाओं में गिना जाता है और इसे 'सूर्य के रथ' की भांति निर्मित किया गया है। इसे 'ब्लैक पगोडा' भी कहा जाता है क्योंकि इसकी गहरे रंग की पत्थरों से बनी संरचना दूर से एक काले शिखर जैसी प्रतीत होती थी।
इस मंदिर का नाम 'कोणार्क' दो शब्दों से मिलकर बना है — 'कोण' (कोना) + 'अर्क' (सूर्य), जिसका अर्थ है "सूर्य का कोना"।
इतिहास
निर्माण काल : 1250 ईस्वी के लगभग
निर्माता : गंग वंश के महाराज नरसिंहदेव प्रथम (
शैली : कलिंग वास्तुकला
मुख्य उद्देश्य : सूर्य देव की पूजा और उनकी शक्ति को दर्शाना।
निर्माण का उद्देश्य :-
राजा नरसिंहदेव प्रथम ने इस मंदिर का निर्माण अपने शासन की महत्ता और सूर्य उपासना की परंपरा को दर्शाने हेतु कराया। मंदिर को ऐसा स्वरूप दिया गया जैसे कि सूर्य देव का रथ पत्थरों में उकेरा गया हो। मंदिर में कुल 24 विशाल पहिए हैं, जो समय के 24 घंटों को दर्शाते हैं, और 7 घोड़े, जो सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक हैं।
विनाश और क्षरण :-
मंदिर का मुख्य गर्भगृह (Sanctum) अब ध्वस्त हो चुका है, और इसका अधिकांश भाग समय, समुद्र और आक्रमणकारियों के प्रभाव से नष्ट हो गया है। माना जाता है कि पुर्तगालियों और अन्य विदेशी आक्रमणों के कारण यह मंदिर खंडित हो गया था।
स्थान और यात्रा मार्ग
स्थान : कोणार्क, पुरी जिला, ओडिशा राज्य, भारत
हवाई मार्ग :-
निकटतम हवाई अड्डा: भुवनेश्वर बीजू पटनायक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा – 64 किमी
रेल मार्ग :-
निकटतम रेलवे स्टेशन : पुरी – 35 किमी
सड़क मार्ग :-
पुरी और भुवनेश्वर से नियमित बसें चलती हैं।
NH-316 मार्ग कोणार्क तक जाता है।
दर्शन और खुलने का समय
खुलने का समय : सुबह 6:00 बजे से रात 8:00 बजे तक
सप्ताह के सभी दिन खुला
टिकट खिड़की: सुबह 6:00 से शाम 6:00 बजे तक
प्रवेश शुल्क :-
भारतीय नागरिक - ₹40
विदेशी नागरिक - ₹600
बच्चों के लिए (15 वर्ष तक) निःशुल्क
गाइड शुल्क (वैकल्पिक) ₹200–500 (भाषा और समय पर निर्भर)
आरती, पूजा और धार्मिक आयोजन
- वर्तमान में कोणार्क मंदिर में पूजा या आरती का आयोजन नहीं होता है क्योंकि यह एक संरक्षित स्मारक है। भक्तजन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मंदिर के सामने खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य (जल अर्पण) देते हैं।
- हर वर्ष कोणार्क नृत्य उत्सव होता है जिसमें देशभर के शास्त्रीय नृत्य कलाकार भाग लेते हैं।
विशेषताएं और देखने योग्य स्थल
24 पहिए :
- हर पहिया एक घंटे का प्रतीक है ।
- इनमें समय मापने की कला उकेरी गई है ।
-प्रत्येक पहिया लगभग 9 फीट ऊँचा है ।
7 घोड़े :
- सूर्य के रथ को खींचते हुए 7 घोड़े – सप्ताह के 7 दिन ।
- इनसे गति और समय का प्रतीक जुड़ा है ।
मूर्ति शिल्प और नक्काशी :
- कामकला – खजुराहो शैली में
- युद्ध, संगीत, नृत्य, प्रकृति और जीवन शैली की झलक
- देवताओं, अप्सराओं, गंधर्वों की सुंदर आकृतियाँ
नाट्य मंडप :
- यहां नृत्य और संगीत का आयोजन होता था
- अब खंडित है पर शिल्प अद्भुत
कोणार्क संग्रहालय :
- ASI द्वारा संचालित
- पुरातात्विक अवशेष, प्रतिमाएँ और चित्र संग्रहित हैं
विशेष आयोजन
1. कोणार्क नृत्य उत्सव :-
हर साल दिसंबर के पहले सप्ताह में
ओडिशा के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य – ओडिसी, भरतनाट्यम, कथक आदि
2. चंद्रभागा मेला:
माघ महीने में चंद्रभागा नदी के किनारे लगता है
हजारों श्रद्धालु सूर्य को स्नान करके अर्घ्य देते हैं
नजदीकी स्थल
1. पुरी जगन्नाथ मंदिर - 35 किमी
2. भुवनेश्वर लिंगराज मंदिर - 65 किमी
3. रामचंडी मंदिर और बीच - 7 किमी
4. चंद्रभागा बीच - 3 किमी
5. चिल्का झील - 50 किमी
कोणार्क सूर्य मंदिर केवल एक ऐतिहासिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय कला, विज्ञान, अध्यात्म और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। इसकी भव्यता, गहराई और इतिहास हर दर्शक को चौंका देता है। यह मंदिर हमें यह सिखाता है कि हमारे पूर्वज कितने विकसित और कल्पनाशील थे।