Amarnath Cave Temple Yatra 2025: अमरनाथ गुफा मंदिर का रहस्य: जानिए बर्फानी बाबा की गुफा से जुड़ी अद्भुत कथा और यात्रा की पूरी जानकारी!
Amarnath Cave Temple Yatra 2025: अमरनाथ गुफा मंदिर 2025 यात्रा की पूरी जानकारी! पढ़ें बर्फानी बाबा के शिवलिंग का रहस्य, गुफा की पौराणिक कथा, यात्रा के दो रास्ते और दर्शन का सर्वोत्तम समय। अमरनाथ यात्रा से जुड़ी हर जानकारी जानें।

Amarnath Cave Temple Yatra 2025: धरती पर जन्नत कहे जाने वाले भारत देश के जम्मू कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा मंदिर हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। भगवान शिव को समर्पित अमरनाथ गुफा को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है जहां हर साल हजारों लाखों की तादाद में श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर के पहुंचते हैं। यह गुफा लगभग 5000 साल पुरानी है। जम्मू कश्मीर का यह रहस्यमयी मंदिर अपने रहस्यों और प्राकृतिक सुंदरता से दूर-दूर से लोगों को आकर्षित करता है।
इस मंदिर का मुख्य आकर्षण केंद्र पवित्र गुफा में पानी की बूंदों से निर्मित प्राकृतिक शिवलिंग है। जो श्रावण पूर्णिमा के दिन अपने पूरे आकार को ग्रहण करता है और उसके बाद अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता चला जाता है।
आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि अमरनाथ गुफा की पवित्र यात्रा कब शुरू होती है? मंदिर की क्या विशेषता है? मंदिर से जुड़े क्या रहस्य हैं? मंदिर से जुड़ी और जानकारी प्राप्त करने के लिए पढ़ते रहिए।
*अमरनाथ मंदिर कहां है?*
हिमालय पर्वत की गोदी में स्थित चारों ओर से हरियाली से परिपूर्ण देवों के देव भगवान शिव को समर्पित अमरनाथ मंदिर हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। जहां प्रत्येक साल लाखों करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु यात्रा करते हैं। यह पवित्र स्थान श्रीनगर से लगभग 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पवित्र अमरनाथ गुफा की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 13 हजार 600 फुट है। इस पवित्र गुफा की लंबाई 19 मीटर चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है।
यह मंदिर वर्ष में केवल एक बार श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। पूरे वर्ष में श्रद्धालु केवल लगभग 45 दिनों के लिए ही मंदिर की यात्रा कर सकते हैं।
*अमरनाथ गुफा मंदिर:*
दरअसल हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थस्थल अमरनाथ गुफा मंदिर में भक्त भगवान शिव की प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं जो पानी के बूंद से स्वयं निर्मित होता है। इस पवित्र शिवलिंग की खास बात यह है कि इस शिवलिंग
का निर्माण ठोस बर्फ से होता है जो श्रावण की पूर्णिमा के दिन अपने पूरे आकार में नजर आता है और उसके बाद शिवलिंग का आकार छोटा होता चला जाता है। बर्फ से निर्मित होने के कारण इस पवित्र शिवलिंग को बाबा बर्फानी के रूप में जाना जाता है।
*अमरनाथ मंदिर का इतिहास:*
अमरनाथ मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यता यह है कि यह वही स्थान है जहां भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व के रहस्य के बारे में बताया था। इसी स्थान पर महादेव ने देवी पार्वती के मन में उत्पन्न सवालों का जवाब दिया था। जिस वक्त भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व रहस्य के बारे में बताया था उस समय उस स्थान पर उन दोनों के अलावा कोई तीसरा प्राणी नहीं था।
जब भगवान शिव मां पार्वती को इस रहस्यमयी कथा को सुना रहे थे तब वहां पर उपस्थित कबूतर के जोड़े ने इस कथा को सुन लिया था। मान्यता यह है कि आज भी उस गुफा में यह कबूतर का जोड़ा अमर पक्षी के रूप में रहते हैं और इनके दर्शन भाग्यशाली श्रद्धालुओं को ही प्राप्त हो पाते हैं।
*पांच तत्वों का त्याग:*
भगवान शिव ने अपनी धर्मपत्नी माता पार्वती को यह पवित्र रहस्यमई कथा सुनने के लिए पांच तत्वों जल, वायु, आकाश, अग्नि, पृथ्वी तक का त्याग कर दिया था।
गुफा की ओर जाने से पहले सबसे पहले शिव जी ने अपने नंदी बैल को त्यागा था, वह स्थान पहलगाम नाम से जाना जाता है। उसके बाद शिव जी ने चंदनवाड़ी नाम की जगह में अपनी जटाओं से चंद्रमा को त्याग दिया था। रास्ते में आगे बढ़ते बढ़ते भगवान शिव ने अपने गले से सांप का त्याग शेषनाग झील पहुंचकर किया था। भगवान शिव ने महागुनास पर्वत पर अपने पुत्र भगवान गणेश को छोड़ा था। और आखरी में पंचतरणी नाम के स्थान पर उन्होंने अपने शरीर से पांचो तत्व धरती, पानी, हवा, आग, आकाश को त्याग दिया था।
*अमरनाथ गुफा की पवित्र खोज:*
एक प्रसिद्ध लोक मान्यता के अनुसार भगवान शिव की इस पवित्र गुफा की खोज का श्रेय एक मुस्लिम गड़़रिये बुटा मलिक को जाता है। एक बार जब वह अपने पशुओं को पहाड़ी पर चराने निकला था तब उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। उस साधु ने उसे कोयले से भरा थैला दिया।
घर लौटने के बाद जब मलिक ने कोयले से भरे थैले को सोने के सिक्कों में परिवर्तित पाया तो वह अचंभित रह गया। जब वह उस पहाड़ी पर वापस लौटा तो उसे उस साधु के दर्शन नहीं हुए परंतु तभी उसे पवित्र गुफा और भगवान शिव के शिवलिंग के दर्शन प्राप्त हुए। उसने गांव पहुंचकर जब पूरी आपबीती गांव वालों को बताई तो सभी गांव वाले शिवलिंग के दर्शन करने के लिए वहां पहुंचे। ऐसा माना जाता है कि तभी से इस पवित्र तीर्थ यात्रा की परंपरा शुरू हुई थी।
अमरनाथ गुफा से जुड़ी एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार कश्मीर की पूरी घाटी जलमग्न हो गई थी। तब धरती के प्राणियों की रक्षा के लिए ऋषि कश्यप ने इस जल को अनेक छोटी-छोटी नदियों और जल स्रोतों में विभाजित कर दिया था। इस समय जब भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा कर रहे थे तब उन्हें हिमालय की चोटियों के बीच पवित्र गुफा के दर्शन प्राप्त हुए थे। तभी से प्रत्येक वर्ष लाखों की तादाद में तीर्थ यात्री भगवान शिव के दर्शन प्राप्त करने के लिए अमरनाथ पहुंचने लगे।
*अमरनाथ गुफा जाने के रास्ते:*
अमरनाथ गुफा जाने के लिए दो प्रमुख रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग से नजदीक बालटाल से जाता है। पहलगाम पहुंचने के लिए जम्मू कश्मीर पर्यटन केंद्र द्वारा सरकारी बसें उपलब्ध कराई जाती हैं और इससे आगे की यात्रा के लिए श्रद्धालुओं को पैदल यात्रा करनी पड़ती है और इस यात्रा में लगभग 5 दिन का समय लग जाता है।
आपको बता दें कि पहलगाम से जाने वाले रास्ते को सुविधाजनक और कुछ हद तक सरल माना जाता है वहीं दूसरी तरफ बालटाल से अमरनाथ गुफा की ओर जाने वाला रास्ता बहुत ही दुर्गम रास्ता है। और इस जोखिम भरे रास्ते से जाने वाले बहुत कम श्रद्धालु होते हैं।