Tithi Ke Prakar: पांच प्रकार की तिथियां होती हैं, जानें किस तिथि में करें कौन-सा कार्य
Tithi Ke Prakar: मुहूर्त में तिथियों का विशेष महत्त्व है। किसी तिथि में कौन-सा कार्य करना चाहिए, इसे विशेष रूप से देखा जाता है। कार्य के उसके अनुकूल तिथि में होने पर उसकी सफलता और शुभता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

30 तिथियों को दो भागों में विभाजित किया गया है – शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। प्रत्येक पक्ष में 15 तिथियाँ होती हैं। इसके अलावा, इन 30 तिथियों को पाँच मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है: नंदा तिथि, पूर्णा तिथि, शून्य तिथि या रिक्तता तिथि, जया तिथि, और भद्रा तिथि। मुहूर्त के उद्देश्य के लिए तिथियों को पाच समूह में वर्गीकृत किया गया है।
पंचांग की 5 मुख्य तिथियां – जानिए किस दिन कौन-सा कार्य करना होता है शुभ
पंचांग के अनुसार 'नंदा', 'भद्रा', 'जया', 'रिक्ता' और 'पूर्णा' तिथियों का विशेष महत्व है। जानें इन तिथियों में कौन-से कार्य करें और कौन-से नहीं।
संदर्भ: "Muhurta – Traditional and Modern" by K.K. Joshi, Bhartiya Vidya Bhavan
पंचांग हिन्दू धर्म में समय निर्धारण का आधार है। व्रत, त्योहार, मुहूर्त, यात्रा, विवाह, व्यापार—हर शुभ कार्य से पहले तिथि की शुद्धता देखी जाती है। हर तिथि का अपना एक स्वभाव और फल होता है, जिसे जानना आवश्यक है।
जैसा कि भारतीय विद्या भवन के वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य के.के. जोशी जी ने अपनी पुस्तक "Muhurta: Traditional and Modern" में विस्तार से बताया है, तिथियों को 5 प्रकारों में बांटा गया है – नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा। आइए जानते हैं इनका महत्व।
नंदा तिथि (प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी)
स्वभाव: हर्षदायक, शुभ
कार्य: नए व्यवसाय का शुभारंभ, घर बनवाना, ज़मीन खरीदना
विशेष: इस तिथि में किया गया कार्य स्थिर और लाभकारी होता है।
भद्रा तिथि (द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी)
स्वभाव: पोषक, संपन्नता बढ़ाने वाली
कार्य: कृषि, अनाज भंडारण, वाहन या पशु ख़रीदना
विशेष: इस दिन क्रय की गई वस्तुएँ संख्या में बढ़ती हैं।
जया तिथि (तृतीया, अष्टमी, त्रयोदशी)
स्वभाव: विजयदायिनी
कार्य: कोर्ट-कचहरी के मामले, शस्त्र, वाहन ख़रीद, संघर्षपूर्ण कार्य
विशेष: प्रतिस्पर्धा वाले कामों में सफलता मिलती है।
रिक्ता तिथि (चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी)
स्वभाव: रिक्त, फलहीन
कार्य: गृहस्थों को कोई नया कार्य नहीं करना चाहिए
विशेष: तांत्रिक क्रियाओं और साधनाओं के लिए उत्तम।
पूर्णा तिथि (पंचमी, दशमी, पूर्णिमा)
स्वभाव: पूर्णता देने वाली
कार्य: मंगनी, विवाह, हवन, पूजन, धार्मिक आयोजन
विशेष: आनंददायक और सामाजिक आयोजनों के लिए श्रेष्ठ।
शून्य तिथियां (Vacuous Tithis)
कुछ विशिष्ट तिथियां ऐसी होती हैं जिन्हें शून्य तिथि माना जाता है, यानी इनमें विवाह जैसे विशेष मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। इनमें सामान्य कार्य किए जा सकते हैं।
शून्य तिथियों के उदाहरण:
चैत्र कृष्ण अष्टमी
वैशाख कृष्ण नवमी
ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी
आषाढ़ कृष्ण षष्ठी
श्रावण कृष्ण द्वितीया-तृतीया
आश्विन कृष्ण दशमी-एकादशी
माघ शुक्ल तृतीया आदि।
(संपूर्ण सूची K.K. Joshi की पुस्तक में दी गई है।)