ग्रहों की चाल से तय होता है विवाह का सही समय | जानें कब बनता है शादी का शुभ योग
जाने कब बनता है विवाह का शुभ योग। ग्रहों की चाल, सप्तम भाव, शुक्र-बृहस्पति और नवांश कुंडली कैसे तय करते हैं शादी का सही समय—ज्योतिषीय विश्लेषण।
ग्रहों की चाल तय करती है विवाह का सही समय, जानें कब बनता है शादी का शुभ योग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विवाह सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं होता, बल्कि यह ग्रहों के अनुकूल संयोजन और दैवी समय से जुड़ा हुआ एक महत्त्वपूर्ण निर्णय है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब कुछ विशेष ग्रह सक्रिय होते हैं, तब विवाह के योग तेजी से बनते हैं। टैरो कार्ड रीडर और न्यूमरोलॉजिस्ट पूजा वर्मा बताती हैं कि कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखकर आसानी से विवाह की संभावना और समय जाना जा सकता है।
शुभ ग्रह बनाते हैं दैवीय मिलन
शुक्र को प्रेम, आकर्षण और भावनाओं का ग्रह माना जाता है, जबकि बृहस्पति जीवन में विस्तार और आशीर्वाद देने वाला ग्रह है। जब ये दोनों ग्रह एक-दूसरे के साथ अनुकूल स्थिति में होते हैं, तब विवाह के लिए सुखद योग बनते हैं। ऐसे समय में व्यक्ति को जीवनसाथी अक्सर संयोगवश मिलता है। संबंध धीरे-धीरे मजबूत होते हैं और शादी का निर्णय सहजता से बन जाता है।
सप्तम भाव के सक्रिय होते ही खुलता है विवाह का मार्ग
कुंडली का सप्तम भाव विवाह और साझेदारी का भाव माना जाता है। जब इसका स्वामी शुभ स्थिति में हो और उस पर शुक्र, चंद्रमा या बृहस्पति की दृष्टि पड़े, तब विवाह के अवसर बढ़ जाते हैं। इस समय अचानक रिश्ते आते हैं, पुरानी पहचान से रिश्ता बन सकता है या किसी महत्वपूर्ण मुलाकात से विवाह की दिशा तय हो जाती है।
राहु-केतु का रहस्यमय प्रभाव
राहु और केतु को ज्योतिष में छाया ग्रह कहा जाता है। ये भ्रम पैदा करते हैं, लेकिन शुभ प्रभाव में होने पर विवाह से जुड़े कर्मिक संबंध बनाते हैं। सप्तम भाव में राहु का होना विदेशी या भिन्न संस्कृति के जीवनसाथी की ओर संकेत करता है, जबकि केतु आत्मिक और पिछले जन्म के संबंधों को दिखाता है। ऐसे विवाहों में एक अनजाना लेकिन गहरा आकर्षण होता है, मानो आत्माएं पहले से जुड़ी रही हों।
नवांश कुंडली से खुलता है विवाह का वास्तविक भविष्य
जन्म कुंडली विवाह के योग बताती है, लेकिन नवांश (D9) कुंडली विवाह का असली स्वरूप और समय तय करती है। यदि नवांश में शुक्र, चंद्रमा और बृहस्पति बलवान हों और सप्तम या नवम भाव से जुड़े हों, तो विवाह का योग मजबूत माना जाता है। कई बार जन्म कुंडली में देरी दिखती है, लेकिन नवांश सक्रिय होते ही विवाह के योग मजबूत हो जाते हैं और शादी शुभ फल देने वाली होती है।
नवम भाव बनाता है भाग्य-विवाह योग
नवम भाव को भाग्य और धर्म का भाव माना गया है। जब सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव या इसके स्वामी से संबंध बनाता है, तब विवाह दैवी इच्छा से होता है। ऐसे विवाह अक्सर अचानक घटित होते हैं—किसी यात्रा, धार्मिक कार्यक्रम या शिक्षा के दौरान जीवनसाथी से मुलाकात हो सकती है।