नाम जप करते हैं? ये गलतियाँ मत करें, वरना लाभ नहीं मिलेगा
नाम जप के 10 बड़े अपराध जिन्हें जानकर ही साधना करें। प्रेमानंद महाराज के अनुसार, इन दोषों से दूर रहकर ही नाम जप का फल मिलेगा।
नाम जप करते हैं? तो इन 10 बड़े अपराधों से रहें दूर, वरना नहीं मिलेगा फल!
प्रेमानंद महाराज की चेतावनी:
नाम जप जीवन के हर सुख और मोक्ष का द्वार खोलने वाला साधन है। लेकिन यदि साधक इन 10 नाम-अपराधों में लिप्त है, तो जप का फल नहीं मिलता। इसलिए ध्यान रहे: कम जपें, लेकिन दोष रहित जप करें।
1. संत-निंदा करना
नाम गुरु-परंपरा से मिलता है।
दूसरों की बुराई देखना (परदोष दर्शन)
निंदा सुनना (परदोष श्रवण)
किसी की निंदा करना (परदोष कथन)
ये तीनों साधना को तुरंत अशक्त बना देते हैं।
2. शिव–विष्णु में भेद करना और गुरु का अनादर
शिव और विष्णु एक ही परम तत्व हैं। इनमें भेद करना महापाप है।
गुरु की अवज्ञा या अपमान साधना को निष्फल कर देता है।
3. शास्त्रों की निंदा और नाम की महिमा पर संदेह
वेद, शास्त्र, पुराण या संत वाणी की आलोचना करना।
सोचना कि “नाम इतना शक्तिशाली कैसे हो सकता है?” — यह भक्ति को कमजोर करता है।
4. नाम के बल पर पाप करना और अन्य साधनों को श्रेष्ठ मानना
पाप करने के बाद नाम जपकर उसे मिटाने का विचार।
यज्ञ, दान, तप, व्रत को नाम से श्रेष्ठ मानना।
5. अनिच्छुक को नाम देना और नाम की उपेक्षा करना
लोभ या अभिमान से दीक्षा देना या थोपना।
बार-बार नाम सुनने के बाद भी जप न करना।
6. सत्संग के बाद भी अहंकार-वासना न छोड़ना
अहंकार, ईर्ष्या, क्रोध या वासना को नहीं छोड़ना।
नाम जप का उद्देश्य मन और व्यवहार सुधारना है, इसे नजरअंदाज करना अपराध है।
नाम जप केवल शब्दों का उच्चारण नहीं, बल्कि भक्ति, श्रद्धा और व्यवहार में परिवर्तन की साधना है। इन दोषों से दूर रहकर ही नाम जप फल प्रदान करता है।